दुनियां में इंसान।।

आज का इंसान…
चेहरा मासूमियत का, दिमाग चालाकी का, और दिल लालच का।
समझदार होना भूल चुका है, अब चालाक और फरेबी होना ही “अक्ल” कहलाने लगा है।
याद रखना— चालाकी समझदारी नहीं होती,
ये बस अज्ञान का दूसरा नाम है।
जो खुद को चालाक समझकर खुश है, वो असल में अपनी ही गिरावट पर ताली बजा रहा है।

सच्चा समझदार और आत्मज्ञानी वो है,
जो सच देख सके, सच बोले, और सच जी सके।
जिसके कर्म इंसानियत को ऊपर उठाएं,
और जिसकी सोच रोशनी फैलाए।
ऐसे लोग कम होते हैं,
लेकिन वही असली ऊँचाई हैं, बाकी भीड़ तो बस शोर है।

अध्यात्म से मुँह मोड़ने वाला इंसान…
अपनी असली पहचान से भाग रहा है।
वो खुद को नहीं जानता,
इसलिए दूसरों को गिराकर खुद को ऊँचा दिखाना चाहता है।
ज्ञान और आत्मज्ञान से जलना,
और अपनी अज्ञानता पर गर्व करना—
ये इंसान की सबसे बड़ी मूर्खता है।

इतिहास में रोशनी लाने वाले हमेशा ज्ञानी रहे हैं,
और अंधेरा फैलाने वाले यही चालाक, फरेबी, दिखावेबाज़।
याद रखना— बिना अध्यात्म के इंसान जानवर से भी नीचे गिर जाता है,
क्योंकि जानवर कम से कम अपनी असलियत नहीं छुपाता,
पर नकली इंसान नकली चेहरे से इंसानियत का गला घोंट देता है।

फर्क साफ है—
समझदार और आत्मज्ञानी इंसानियत के शिखर हैं,
चालाक-फरेबी और दिखावेबाज़ इंसानियत की तलहटी।
शिखर ऊँचाई मांगता है,
और तलहटी बस गंदगी जमा करती है।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

दुनियां में इंसान।।

आज का इंसान… चेहरा मासूमियत का, दिमाग चालाकी का, और दिल लालच का। समझदार होना भूल चुका है, अब चालाक और फरेबी होना ही “अक्ल” कहलाने लगा है। या...