Author Yogendra Singh
Authoryogendra द्वारा प्रस्तुत यह हिंदी ब्लॉग प्रेरणादायक कहानियों, आत्मिक विचारों और सामाजिक विषयों पर आधारित लेखों का संग्रह है। यहां आपको ऐसी छोटी-छोटी कहानियां और विचार मिलेंगे जो दिल को छू जाते हैं और सोचने पर मजबूर कर देते हैं। चाहे आप छात्र हों, शिक्षक हों, अभिभावक हों या कोई साधक – यहां हर किसी के लिए कुछ न कुछ सीखने को मिलेगा। सरल भाषा में लिखी गई ये रचनाएं जीवन को सकारात्मक दिशा देने में सहायक हैं। पढ़ें, सोचें और अपने भीतर बदलाव महसूस करें।
दुनियां में इंसान।।
तेरे लौट आने की कसम | लेखक: योगेन्द्र सिंह
"तेरे लौट आने की कसम"
लेखक: योगेन्द्र सिंह
रात की सर्द हवा स्टेशन पर धीरे-धीरे बह रही थी। प्लेटफॉर्म पर सन्नाटा था, बस पुराने हो चुके लाउडस्पीकर पर कहीं दूर से आती ट्रेन की घोषणा की आवाज़, और राघव का बेचैन दिल। वो वहीं खड़ा था, पाँच साल से उस एक वक़्त का इंतज़ार करते हुए, जब उसकी सिया लौट कर आएगी।
राघव और सिया की कहानी कॉलेज से शुरू हुई थी। दोनों अलग-अलग दुनिया से थे। सिया पढ़ाई में तेज, शांत स्वभाव की, और राघव एक मुस्कराते हुए आशिक़, जो हर किसी की मदद करता, पर उसकी नज़रों में बस सिया ही बसती थी।
लाइब्रेरी की पहली मुलाकात दोनों की ज़िंदगी बदल गई। राघव ने सिया को किताबों में डूबी देखा और पूछा,
"किताबें इतना वक्त खा जाती हैं, कभी किसी को वक्त दोगी?"
सिया ने मुस्कुरा कर जवाब दिया, "किताबें कभी धोखा नहीं देतीं… इंसान देता है।"
राघव वो जवाब सुनकर ठहर सा गया, लेकिन उस दिन उसने खुद से वादा किया कि वो सिया को कभी धोखा नहीं देगा, कभी टूटने नहीं देगा।
धीरे-धीरे मोहब्बत बढ़ी, बातें बढ़ीं, मुलाक़ातें गहरी होती गईं। सिया की आँखों में राघव की दुनिया बस गई और राघव की धड़कनों में सिया की सूरत।
लेकिन मोहब्बत की राहें कभी सीधी नहीं होतीं। सिया के घरवालों को उनका रिश्ता मंजूर नहीं था। उन्होंने जबरदस्ती सिया की सगाई कहीं और तय कर दी। सिया मजबूर थी, पर उसका दिल सिर्फ राघव का था।
अंतिम मुलाकात वाली शाम, बारिश हो रही थी। सिया कांपते होठों से बोली,
"राघव, हम साथ नहीं हो सकते… मेरी मजबूरी समझो।"
राघव ने उसका हाथ पकड़ कर कहा,
"अगर मोहब्बत सच्ची है, तो जुदाई बस वक़्त की है, मंज़िल नहीं।"
सिया की आँखें भीग गईं, उसने राघव के सीने पर सिर रख दिया,
"मैं लौट आऊँगी, वक़्त के हर इम्तिहान को पार करके… तेरे लौट आने की कसम।"
फिर सिया चली गई… वक़्त बीतता रहा, राघव ने न जाने कितनी बारिशें देखीं, स्टेशन की कितनी रातें गिनीं, लेकिन सिया का इंतज़ार नहीं छोड़ा।
और आज… पाँच साल बाद… वही स्टेशन, वही हवा… तभी पीछे से जानी-पहचानी सुरीली आवाज़ आई,
"इतना इंतज़ार किया… अब बस और नहीं…"
राघव पलटा, सामने सिया खड़ी थी, आँखों में वही मोहब्बत, हाथ में वही लाल दुपट्टा जो उसने विदाई वाले दिन लिया था।
राघव ने उसे देखा, जैसे उसकी धड़कनों को सुकून मिल गया।
"लौट आई?"
सिया मुस्कराई, "तेरे लौट आने की कसम थी… निभा दी। माँ-बाप मान गए… अब कोई जुदाई नहीं।"
राघव ने सिया को बाँहों में भर लिया, और कहा,
"अब बस हम… तुझसे जुदाई सिर्फ़ मौत ही कर सकती है, और मौत से भी लड़ जाऊँगा।"
स्टेशन की वो रात, मोहब्बत की जीत की गवाही बन गई। इंतज़ार, वादे, और सच्चे प्यार ने फिर से दो दिलों को एक कर दिया।
- समाप्त -
क़लम और सिक्के का युद्ध | लेखक योगेन्द्र सिंह
"क़लम और सिक्के का युद्ध"
क़लम और सिक्के का युद्ध
राघव एक मेहनती लेखक था। किताबें लिखता था, समाज को आईना दिखाता था, सच के शब्द गढ़ता था। उसने जीवनभर सीखा, सिखाया, और अपनी रचनाओं से लोगों के सोचने का नजरिया बदलने की कोशिश की। मगर उसके पास बड़ी गाड़ी नहीं थी, चमचमाते कपड़े नहीं थे, और बैंक बैलेंस में लाखों-करोड़ों नहीं थे।
उसकी किताबें किताबों की दुकानों में धूल फांकती रहीं। लोग कहते, "भैया, अच्छी लिखते हो, पर इससे होगा क्या? ज्ञान खा लोगे क्या?" राघव मुस्कुराता और लिखता रहता।
दूसरी तरफ़ था विक्रम सेठी — जिसने कॉलेज में शायद ही कोई किताब पूरी पढ़ी हो। मगर उसका बाप करोड़पति था। विक्रम ने सोशल मीडिया पर अपनी महंगी घड़ियों, कारों, और पार्टियों की फोटो डालकर लाखों फॉलोअर्स जुटा लिए। लोग उसे 'Youth Icon' कहने लगे।
एक दिन शहर के बड़े फंक्शन में दोनों आमंत्रित थे। मंच पर सबसे पहले विक्रम बुलाया गया। कैमरे चमकने लगे, भीड़ तालियां पीटने लगी। विक्रम ने स्टेज पर आकर बस इतना कहा:
"पैसा है तो सब कुछ है। और अगर नहीं है, तो ज्ञान-व्यान की बातें पेट नहीं भरतीं।"
लोगों ने फिर तालियां बजाईं।
राघव की बारी आई। उसने माइक पकड़ा, आंखों में आत्मविश्वास था। बोला:
"सही कहा विक्रम जी ने, इस समाज में ज्ञान की कद्र किताबों तक सीमित है, और नोटों की कद्र हर जेब में। मगर याद रखो, इतिहास में जिनके पास केवल पैसा था, उनका नाम नोटों पर छपता है, और जिनके पास ज्ञान था, उनका नाम पीढ़ियों के दिलों में बसता है।"
भीड़ चुप हो गई। कुछ ने ताली बजाई, मगर ज़्यादातर लोग विक्रम के पास सेल्फी खिंचवाने दौड़ पड़े।
राघव वहीं खड़ा रहा, सोचता रहा —
"सच यही है, इस समाज में सिक्के की खनक, क़लम की स्याही से ऊँची सुनाई देती है।"
मगर उसने हार नहीं मानी, क्योंकि उसे पता था — वक्त के साथ सिक्के बदल जाते हैं, पर असली लेखक की बात अमर हो जाती है।
सीख:
इस दुनिया में शक्ति और पैसे को प्राथमिकता दी जाती है, मगर ज्ञान वो बीज है, जो देर से उगता है — पर जब उगता है, तो सदियों तक फल देता है।
🧘♂️ अध्यात्मिक व्यक्ति को मूर्ख समझती है दुनिया — एक कड़वी सच्चाई |
🌍 परिचय: जब आत्मा जागे, तो दुनिया सोई मिलती है
जब कोई व्यक्ति ध्यान, आत्मचिंतन और सत्य की खोज की ओर बढ़ता है, तो समाज अक्सर उसे ताने देता है — "पागल हो गया है", "कुछ काम नहीं करता", "जमाने से कट गया है"। यही वो दुनिया की सच्चाई है, जो अध्यात्मिक व्यक्तियों को मूर्ख समझती है। लेकिन ऐसा क्यों होता है?
🧠 दुनिया की सोच: परिणामवादी और सतही मानसिकता
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🔁 दिखावे का युग:
आज की दुनिया उस चीज़ को मानती है जो दिखती है — बड़ा घर, पैसा, कार, स्टेटस।
जबकि अध्यात्मिक व्यक्ति दिखावे से परे होता है, वो आंतरिक संतोष को प्राथमिकता देता है। -
🏆 तुलना की प्रवृत्ति:
समाज कहता है: "उसने क्या पाया?"
जबकि अध्यात्म पूछता है: "उसने खुद को कितना जाना?"
यही कारण है कि आध्यात्मिक प्रगति को लोग ‘प्रगति’ नहीं मानते। -
🙄 अनजाने का भय:
जो लोग ध्यान, ब्रह्म, आत्मा, मोक्ष की बातें करते हैं, उन्हें समझना कठिन होता है। और जो समझ में न आए, उसे समाज अक्सर अस्वीकार कर देता है।
🌱 असली अध्यात्म क्या है?
अध्यात्म का मतलब है —
👉 खुद को जानना,
👉 माया के भ्रम से ऊपर उठना,
👉 मोह, लोभ और अहंकार को छोड़ना।
लेकिन दुर्भाग्य यह है कि जिस व्यक्ति ने जीवन को सही मायनों में समझ लिया है, उसे समाज "कामचोर", "अव्यवहारिक", या "सनकी" तक कह देता है।
🔍 इतिहास गवाह है: हर ज्ञानी पहले ठुकराया गया
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संत कबीर: जुलाहे थे, लेकिन ज्ञान इतना गहरा कि आज भी लोग उनके दोहे पढ़ते हैं।
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महावीर और बुद्ध: राजघरानों को त्याग कर ज्ञान की राह पर चले — समाज ने विरोध किया।
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स्वामी विवेकानंद: जब उन्होंने वेदांत की बातें कीं, तो लोग मज़ाक उड़ाते थे।
👉 ज्ञान के बीज बोने वाले को समाज अक्सर पत्थर ही मारता है।
💔 अध्यात्मिक व्यक्ति किन संघर्षों से गुजरता है?
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🤦♂️ परिवार की उपेक्षा: “काम कर लो, ध्यान-योग बाद में करना।”
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😔 दोस्तों की हँसी: “क्या बाबा बन गया है?”
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👤 एकाकीपन: जब सब मौज में होते हैं, तो वो मौन में होता है।
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😢 समाज का तिरस्कार: “ये दुनिया के लायक नहीं।”
✨ सच्चाई क्या है?
👉 जिस व्यक्ति को दुनिया मूर्ख समझती है, वो अक्सर सच के सबसे क़रीब होता है।
👉 जो भीड़ से हटकर चला, वो अकेला ज़रूर था — लेकिन भटका नहीं था।
👉 समाज बदलता है, लेकिन अध्यात्मिक चेतना वही रहती है — शाश्वत।
✅ कैसे समझें कि कोई सच में अध्यात्मिक है?
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शांति उसकी पहचान होती है
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वो दूसरों पर दोष नहीं देता
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अहंकार शून्य होता है
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सत्य के लिए असुविधा स्वीकार करता है
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बिना प्रचार के जीता है
🔚 निष्कर्ष:
अध्यात्मिक व्यक्ति को मूर्ख समझना समाज की सबसे बड़ी त्रुटि है।
जो लोग माया से परे जीवन को समझने की कोशिश करते हैं, वो असल में जीवन को जीने का सही तरीका जानते हैं।
ऐसे लोग समाज को आईना दिखाते हैं, और इसलिए वो असहज कर देते हैं।
लेकिन याद रखें —
“जो दुनिया से ऊपर सोचता है, उसे दुनिया नीचे दिखती है।”
फेमिनिज़्म के गलत इस्तेमाल पर एक सटीक नज़र | नारीवाद का दुरुपयोग
🔍 परिचय
आज के समय में फेमिनिज़्म (नारीवाद) एक बहुचर्चित और संवेदनशील विषय बन चुका है। मूल रूप से यह आंदोलन महिलाओं को सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक बराबरी दिलाने के लिए शुरू हुआ था। लेकिन वर्तमान दौर में, फेमिनिज़्म का गलत उपयोग भी तेजी से बढ़ा है, जिसके कारण इसके असली उद्देश्य पर सवाल खड़े हो रहे हैं।
❓ फेमिनिज़्म क्या है?
फेमिनिज़्म का अर्थ है — "महिलाओं को पुरुषों के समान अधिकार और अवसर मिलना।" यह लैंगिक भेदभाव के खिलाफ एक सशक्त आवाज है, जिसका उद्देश्य महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाना है।
⚠️ फेमिनिज़्म का गलत उपयोग कैसे हो रहा है?
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झूठे उत्पीड़न के मामले:
कई बार कुछ महिलाएं दहेज उत्पीड़न, यौन उत्पीड़न या घरेलू हिंसा जैसे कानूनों का गलत फायदा उठाकर निर्दोष पुरुषों को फँसाने का काम करती हैं। -
अत्यधिक अधिकार की माँग:
कहीं-कहीं देखा गया है कि महिलाएं सिर्फ समानता नहीं, बल्कि विशेषाधिकार (special treatment) की मांग करती हैं जो फेमिनिज़्म की मूल भावना से विपरीत है। -
पुरुष विरोधी सोच को बढ़ावा:
कुछ वर्गों में फेमिनिज़्म को पुरुष-विरोधी आंदोलन की तरह प्रचारित किया जा रहा है, जिससे लैंगिक संतुलन बिगड़ रहा है। -
सोशल मीडिया पर ट्रेंड बनाना:
आजकल सोशल मीडिया पर किसी महिला का आरोप लगते ही उसे 'सच्चा' मान लिया जाता है, जबकि जाँच-पड़ताल बाद में होती है। इससे ग़लत धारणाएँ बनती हैं।
💡 नारीवाद और सशक्तिकरण में अंतर समझें
नारी सशक्तिकरण (Women Empowerment) का अर्थ है महिलाओं को उनकी क्षमता के अनुसार निर्णय लेने की स्वतंत्रता देना। जबकि कुछ लोग फेमिनिज़्म को सिर्फ पुरुषों को नीचा दिखाने का माध्यम बना लेते हैं — जो कि सशक्तिकरण नहीं, बल्कि असमानता को जन्म देता है।
🧠 समाज पर प्रभाव
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विश्वास की कमी: झूठे मामलों की वजह से असली पीड़ितों पर भी समाज शक करने लगता है।
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लैंगिक तनाव: पुरुषों और महिलाओं के बीच विश्वास का संकट बढ़ता है।
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कानूनी प्रणाली पर बोझ: गलत मामलों के कारण न्यायपालिका पर अनावश्यक दबाव बढ़ता है।
✅ समाधान क्या है?
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फेमिनिज़्म की सही शिक्षा देना
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लैंगिक समानता के दोनों पक्षों को समझना
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कानूनों का दुरुपयोग रोकने के लिए सख्त कदम उठाना
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महिलाओं और पुरुषों को साथ लेकर चलने की मानसिकता विकसित करना
🔚 निष्कर्ष
फेमिनिज़्म का गलत इस्तेमाल न केवल समाज को भ्रमित कर रहा है, बल्कि महिलाओं की असली लड़ाई को भी कमजोर बना रहा है। हमें नारीवाद को एक संतुलित सोच और न्यायपूर्ण दिशा में ले जाना होगा, ताकि सभी को समान अधिकार और सम्मान मिल सके।
Life After Life – Real or Illusion?
Life After Life – Real or Illusion?
Exploring the Mystery Beyond Death
By: Author Yogendra Singh
Introduction: The Eternal Question
What happens after we die? This timeless question stirs wonder, fear, hope, and debate across civilizations. From ancient scriptures to modern scientific studies, the notion of “life after life” has fascinated human minds for centuries. But is it a mystical truth or a psychological illusion? This article journeys through religious doctrines, scientific findings, philosophical insights, and personal testimonies to examine whether life continues beyond death — or if it's a comforting mirage.
Spiritual Teachings Across Cultures
Belief in life after death is central to many world religions:
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Hinduism teaches rebirth (punarjanma) governed by karma.
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Buddhism speaks of the cycle of suffering and rebirth (samsara) until liberation (nirvana).
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Christianity and Islam describe eternal life in heaven or hell, based on divine judgment.
These beliefs offer comfort and moral structure. Rituals such as ancestral worship, funeral rites, and readings like the Tibetan Book of the Dead reflect humanity's deep reverence for the afterlife.
However, critics argue these are cultural constructs — ways of dealing with the unknown and the fear of death.
Science Weighs In: Consciousness and Death
The scientific community largely defines death as the irreversible cessation of brain activity. In this view, consciousness ceases when the brain dies. But certain phenomena challenge this:
Near-Death Experiences (NDEs)
People who were clinically dead and revived often report:
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Seeing a tunnel or bright light
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A sense of peace and detachment from the body
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Encounters with deceased relatives or spiritual beings
Are these hallucinations caused by a dying brain, or glimpses into another dimension?
Quantum Consciousness Theory
Physicist Sir Roger Penrose and anesthesiologist Dr. Stuart Hameroff suggest that consciousness might exist at the quantum level and possibly survive death. Though controversial, this theory keeps the debate alive within scientific circles.
Philosophy and the Nature of the Self
Philosophy adds another dimension to this discussion:
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Socrates believed the soul is eternal.
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Descartes separated mind and body, leaving room for existence beyond death.
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Advaita Vedanta declares the Atman (soul) as indestructible — neither born nor dying.
In contrast, modern materialists argue the “self” is a brain-generated illusion that ends with death. From this perspective, life after life is a psychological trick of evolution — a story we tell ourselves to manage existential dread.
Experiential Insights: Mystics and Memory
Beyond religion and science, personal experiences provide compelling — though subjective — evidence:
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Past-Life Memories: Children recalling lives they've never known, sometimes with verifiable details.
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Spiritual Visions: Mystics from all traditions speak of traveling beyond this world in deep meditation or near-death states.
Saints like Sri Ramakrishna, Ramana Maharshi, and Saint Teresa of Ávila described death not as an end but as a passage to a higher realm of consciousness.
Life After Life: Real or Illusion?
The answer may not be absolute:
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If you trust science alone, it leans toward illusion — an evolutionary defense mechanism.
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If you walk a spiritual path, life after death feels like an intuitive truth.
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If you remain open-minded, it may be a question of personal discovery.
Perhaps what matters most is how this belief shapes our lives before death.
Conclusion: Living with the Mystery
“Death is not the opposite of life, but a part of it,” wrote Japanese author Haruki Murakami.
Whether real or imagined, the idea of life after life invites us to live more consciously, love more deeply, and fear less. It nudges us toward humility and wonder — and perhaps that’s the greatest truth hidden within the mystery.
Editor’s Note:
This article blends theological interpretations, scientific analysis, and philosophical contemplation. Readers are encouraged to reflect and explore these views with an open yet critical mind.
मृत्यु के बाद जीवन – सत्य या माया?
मृत्यु के बाद जीवन – सत्य या माया?
मृत्यु के पार जीवन के रहस्य की खोज
लेखक: लेखक योगेन्द्र सिंह
भूमिका: एक शाश्वत प्रश्न
हम मरने के बाद कहाँ जाते हैं? यह प्रश्न युगों से मानव चेतना को झकझोरता रहा है। क्या मृत्यु अंत है, या किसी नई यात्रा की शुरुआत? “मृत्यु के बाद जीवन” की धारणा विश्व की लगभग हर सभ्यता में किसी न किसी रूप में विद्यमान रही है। लेकिन क्या यह आध्यात्मिक सत्य है या एक भावनात्मक भ्रम? यह लेख धर्म, विज्ञान, दर्शन और व्यक्तिगत अनुभवों के माध्यम से इस गूढ़ रहस्य की पड़ताल करता है।
धार्मिक मान्यताएँ और सांस्कृतिक दृष्टिकोण
विभिन्न धर्मों में मृत्यु के बाद जीवन की अवधारणाएँ अलग-अलग हैं:
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हिंदू धर्म में पुनर्जन्म (पुनर्जन्म) और कर्म का सिद्धांत है।
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बौद्ध धर्म संसार के चक्र और निर्वाण की बात करता है।
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ईसाई धर्म और इस्लाम स्वर्ग और नर्क की अवधारणाएँ प्रस्तुत करते हैं।
ये मान्यताएँ व्यक्ति को नैतिक जीवन जीने की प्रेरणा देती हैं और मृत्यु के भय से मुक्ति का मार्ग सुझाती हैं।
लेकिन कुछ विचारक मानते हैं कि ये सब केवल सांस्कृतिक कथाएँ हैं – मनुष्य की मृत्यु-भय से उत्पन्न कल्पनाएँ।
विज्ञान की दृष्टि: चेतना और मृत्यु
वैज्ञानिक दृष्टिकोण से देखा जाए तो जब मस्तिष्क की सभी गतिविधियाँ रुक जाती हैं, तो व्यक्ति की चेतना भी समाप्त हो जाती है। परंतु कुछ घटनाएँ इस दृष्टिकोण को चुनौती देती हैं:
नियर डेथ एक्सपीरियंस (NDE)
कई लोग जो मृत्यु के करीब पहुँच चुके थे और फिर लौटे, उन्होंने बताया कि:
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उन्होंने एक सुरंग और उजाला देखा
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शरीर से बाहर होने का अनुभव हुआ
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दिवंगत परिजनों या दिव्य प्रकाश से साक्षात्कार हुआ
कुछ वैज्ञानिक इसे मस्तिष्क की अंतिम गतिविधियों का परिणाम मानते हैं, लेकिन अन्य इसे चेतना के परे अस्तित्व का संकेत मानते हैं।
क्वांटम चेतना सिद्धांत
प्रसिद्ध भौतिकशास्त्री सर रॉजर पेनरोज और डॉ. स्टुअर्ट हैमरॉफ ने सुझाव दिया कि चेतना क्वांटम स्तर पर अस्तित्व में रह सकती है और शायद मृत्यु के बाद भी बनी रहती है। यह सिद्धांत अभी विवादास्पद है, लेकिन यह चेतना और मृत्यु के रहस्य को और गहराई से समझने का प्रयास करता है।
दार्शनिक दृष्टिकोण: आत्मा और उसका अस्तित्व
दार्शनिक चिंतन इस विषय को और गहराई प्रदान करता है:
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सुकरात आत्मा को अमर मानते थे।
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डेसकार्टेस ने मस्तिष्क और आत्मा को अलग माना।
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अद्वैत वेदांत के अनुसार आत्मा न जन्म लेती है, न मरती है – वह शुद्ध चेतना है।
वहीं, आधुनिक भौतिकवादी दर्शन के अनुसार 'स्व' केवल मस्तिष्क की रचना है, जो मृत्यु के साथ समाप्त हो जाता है।
अनुभवों की दुनिया: योगी, संत और साधक
धार्मिक ग्रंथों और वैज्ञानिक सिद्धांतों के अलावा व्यक्तिगत अनुभव भी इस विषय को रोचक बनाते हैं:
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पुनर्जन्म की स्मृतियाँ: कई बच्चे ऐसे विवरण बताते हैं जो उनके पिछले जन्म से जुड़े प्रतीत होते हैं – और कुछ मामलों में प्रमाणित भी हुए हैं।
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आध्यात्मिक दर्शन: योगी और साधक ध्यान में मृत्यु से परे की अवस्थाओं का अनुभव करते हैं।
श्री रामकृष्ण परमहंस, भगवान रमण महर्षि जैसे संतों ने बताया कि मृत्यु कोई अंत नहीं, बल्कि चेतना की एक नई अवस्था है।
क्या मृत्यु के बाद जीवन सच है या भ्रम?
इस प्रश्न का उत्तर व्यक्ति की दृष्टिकोण पर निर्भर करता है:
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यदि आप विज्ञान पर विश्वास करते हैं, तो यह एक भ्रम हो सकता है।
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यदि आप आध्यात्मिक मार्ग पर हैं, तो यह एक गूढ़ सत्य है।
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यदि आप एक जिज्ञासु हैं, तो यह खोज का विषय है।
जो बात निश्चित है, वह यह कि यह धारणा हमारे जीवन को अधिक अर्थपूर्ण बना देती है।
निष्कर्ष: रहस्य के साथ जीना सीखें
जापानी लेखक हरुकी मुराकामी ने लिखा, “मृत्यु जीवन के विपरीत नहीं है, बल्कि उसका ही एक हिस्सा है।”
चाहे यह सत्य हो या माया, “मृत्यु के बाद जीवन” की अवधारणा हमें अधिक सजगता, प्रेम और करुणा से जीना सिखाती है। यही शायद इसका सबसे बड़ा सत्य है।
संपादकीय टिप्पणी:
यह लेख धर्म, विज्ञान, दर्शन और आत्मानुभूति का संगम है। हम पाठकों को आमंत्रित करते हैं कि वे इन विचारों को खुले मन और विवेकपूर्ण दृष्टिकोण से आत्मसात करें।
दुनियां में इंसान।।
आज का इंसान… चेहरा मासूमियत का, दिमाग चालाकी का, और दिल लालच का। समझदार होना भूल चुका है, अब चालाक और फरेबी होना ही “अक्ल” कहलाने लगा है। या...
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