क़लम और सिक्के का युद्ध | लेखक योगेन्द्र सिंह

 "क़लम और सिक्के का युद्ध"


क़लम और सिक्के का युद्ध

लेखक | योगेन्द्र सिंह

राघव एक मेहनती लेखक था। किताबें लिखता था, समाज को आईना दिखाता था, सच के शब्द गढ़ता था। उसने जीवनभर सीखा, सिखाया, और अपनी रचनाओं से लोगों के सोचने का नजरिया बदलने की कोशिश की। मगर उसके पास बड़ी गाड़ी नहीं थी, चमचमाते कपड़े नहीं थे, और बैंक बैलेंस में लाखों-करोड़ों नहीं थे।

उसकी किताबें किताबों की दुकानों में धूल फांकती रहीं। लोग कहते, "भैया, अच्छी लिखते हो, पर इससे होगा क्या? ज्ञान खा लोगे क्या?" राघव मुस्कुराता और लिखता रहता।

दूसरी तरफ़ था विक्रम सेठी — जिसने कॉलेज में शायद ही कोई किताब पूरी पढ़ी हो। मगर उसका बाप करोड़पति था। विक्रम ने सोशल मीडिया पर अपनी महंगी घड़ियों, कारों, और पार्टियों की फोटो डालकर लाखों फॉलोअर्स जुटा लिए। लोग उसे 'Youth Icon' कहने लगे।

एक दिन शहर के बड़े फंक्शन में दोनों आमंत्रित थे। मंच पर सबसे पहले विक्रम बुलाया गया। कैमरे चमकने लगे, भीड़ तालियां पीटने लगी। विक्रम ने स्टेज पर आकर बस इतना कहा:
"पैसा है तो सब कुछ है। और अगर नहीं है, तो ज्ञान-व्यान की बातें पेट नहीं भरतीं।"

लोगों ने फिर तालियां बजाईं।

राघव की बारी आई। उसने माइक पकड़ा, आंखों में आत्मविश्वास था। बोला:
"सही कहा विक्रम जी ने, इस समाज में ज्ञान की कद्र किताबों तक सीमित है, और नोटों की कद्र हर जेब में। मगर याद रखो, इतिहास में जिनके पास केवल पैसा था, उनका नाम नोटों पर छपता है, और जिनके पास ज्ञान था, उनका नाम पीढ़ियों के दिलों में बसता है।"

भीड़ चुप हो गई। कुछ ने ताली बजाई, मगर ज़्यादातर लोग विक्रम के पास सेल्फी खिंचवाने दौड़ पड़े।

राघव वहीं खड़ा रहा, सोचता रहा —
"सच यही है, इस समाज में सिक्के की खनक, क़लम की स्याही से ऊँची सुनाई देती है।"

मगर उसने हार नहीं मानी, क्योंकि उसे पता था — वक्त के साथ सिक्के बदल जाते हैं, पर असली लेखक की बात अमर हो जाती है।


सीख:
इस दुनिया में शक्ति और पैसे को प्राथमिकता दी जाती है, मगर ज्ञान वो बीज है, जो देर से उगता है — पर जब उगता है, तो सदियों तक फल देता है।

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