हर इंसान अपने दिल के अहसासों को, जज्बातों को छुपाकर रखता है, खुद की हकीकत को छुपाकर, एक मुखौटा लगाए घूमता है इंसान। लेकिन किसी के प्यार में पड़कर,खुद को खो देने वाला इंसान अपना मुखौटा उस सख्स के सामने उतार देता है जिस पर वो भरोसा करता है और उस इंसान से प्यार करता है। इंसान जिसके सामने अपना मुखौटा उतारता है ,वो सख्स वापस प्यार में नही पड़ता। फिर होता कुछ यूँ है कि एक इंसान प्यार में पड़कर अपना मुखौटा उतार पाने जज्बात बयां कर देता है और दूसरा इंसान अपना मुखौटा लगाए रहता है। जिससे एक इंसान को मिलता दुख प्यार का। फिर शुरू होती है शुरुआत नफरत की प्यार नाम से। मुखौटा लगाने वाला इंसान खुद मजबूर होकर अपना मुखौटा उतार देता है और यही उम्मीद दूसरों से करता है। मुखौटे की इस दुनिया में असल चेहरा देखना मुश्किल है। खुद मजबूर होकर अपना मुखौटा उतारने वालों की कहानी भी अलग है। तुमने अगर मुखौटा उतार दिया अपनी भावनाओं में वह कर और कोई दुख देकर चला गया। लेकिन बात बस इतनी सी है तुमने भी तो बहुत लोग के चेहरे बिना मुखौटे के देखें होंगे और खुद तुमने अपना मुखौटा नही उतारा होगा। दुख उसे भी हुआ होगा, फर्क तुम्हे भी नही पड़ा होगा।
दिखावटी दुनिया में मुखौटा लगाना आम रिवाज है। लेकिन जब कोई इंसान अपनी खुशी से अपनी भावनाएं किसी के सामने रखता है बिना किसी मुखौटे के,तब कोई उसकी कद्र ना करे तो उसे भी बहुत दुख होता है जिसने खुद किसी की भावनाओं की कद्र नही की। वो कहते है ना कि अपना दुख बड़ा लगता है,फिर चाहे वही दुख हमने किसी को क्यों ना दिया हो। मुखौटे की इस दिखावटी दुनिया में प्यार की भावनाओं में बहकर इंसान खुद को असल में दूसरे को दिखाता है। जैसा वो है। और यकीन मानिए हर इंसान अच्छा ही है। बस किसी को प्यार होता है और किसी को नही। देखों दुनिया में किसने अपना मुखौटा हटाया और किसने नही।
- योगेन्द्र सिंह
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