"तेरे लौट आने की कसम"
लेखक: योगेन्द्र सिंह
रात की सर्द हवा स्टेशन पर धीरे-धीरे बह रही थी। प्लेटफॉर्म पर सन्नाटा था, बस पुराने हो चुके लाउडस्पीकर पर कहीं दूर से आती ट्रेन की घोषणा की आवाज़, और राघव का बेचैन दिल। वो वहीं खड़ा था, पाँच साल से उस एक वक़्त का इंतज़ार करते हुए, जब उसकी सिया लौट कर आएगी।
राघव और सिया की कहानी कॉलेज से शुरू हुई थी। दोनों अलग-अलग दुनिया से थे। सिया पढ़ाई में तेज, शांत स्वभाव की, और राघव एक मुस्कराते हुए आशिक़, जो हर किसी की मदद करता, पर उसकी नज़रों में बस सिया ही बसती थी।
लाइब्रेरी की पहली मुलाकात दोनों की ज़िंदगी बदल गई। राघव ने सिया को किताबों में डूबी देखा और पूछा,
"किताबें इतना वक्त खा जाती हैं, कभी किसी को वक्त दोगी?"
सिया ने मुस्कुरा कर जवाब दिया, "किताबें कभी धोखा नहीं देतीं… इंसान देता है।"
राघव वो जवाब सुनकर ठहर सा गया, लेकिन उस दिन उसने खुद से वादा किया कि वो सिया को कभी धोखा नहीं देगा, कभी टूटने नहीं देगा।
धीरे-धीरे मोहब्बत बढ़ी, बातें बढ़ीं, मुलाक़ातें गहरी होती गईं। सिया की आँखों में राघव की दुनिया बस गई और राघव की धड़कनों में सिया की सूरत।
लेकिन मोहब्बत की राहें कभी सीधी नहीं होतीं। सिया के घरवालों को उनका रिश्ता मंजूर नहीं था। उन्होंने जबरदस्ती सिया की सगाई कहीं और तय कर दी। सिया मजबूर थी, पर उसका दिल सिर्फ राघव का था।
अंतिम मुलाकात वाली शाम, बारिश हो रही थी। सिया कांपते होठों से बोली,
"राघव, हम साथ नहीं हो सकते… मेरी मजबूरी समझो।"
राघव ने उसका हाथ पकड़ कर कहा,
"अगर मोहब्बत सच्ची है, तो जुदाई बस वक़्त की है, मंज़िल नहीं।"
सिया की आँखें भीग गईं, उसने राघव के सीने पर सिर रख दिया,
"मैं लौट आऊँगी, वक़्त के हर इम्तिहान को पार करके… तेरे लौट आने की कसम।"
फिर सिया चली गई… वक़्त बीतता रहा, राघव ने न जाने कितनी बारिशें देखीं, स्टेशन की कितनी रातें गिनीं, लेकिन सिया का इंतज़ार नहीं छोड़ा।
और आज… पाँच साल बाद… वही स्टेशन, वही हवा… तभी पीछे से जानी-पहचानी सुरीली आवाज़ आई,
"इतना इंतज़ार किया… अब बस और नहीं…"
राघव पलटा, सामने सिया खड़ी थी, आँखों में वही मोहब्बत, हाथ में वही लाल दुपट्टा जो उसने विदाई वाले दिन लिया था।
राघव ने उसे देखा, जैसे उसकी धड़कनों को सुकून मिल गया।
"लौट आई?"
सिया मुस्कराई, "तेरे लौट आने की कसम थी… निभा दी। माँ-बाप मान गए… अब कोई जुदाई नहीं।"
राघव ने सिया को बाँहों में भर लिया, और कहा,
"अब बस हम… तुझसे जुदाई सिर्फ़ मौत ही कर सकती है, और मौत से भी लड़ जाऊँगा।"
स्टेशन की वो रात, मोहब्बत की जीत की गवाही बन गई। इंतज़ार, वादे, और सच्चे प्यार ने फिर से दो दिलों को एक कर दिया।
- समाप्त -