मनुष्य का जीवन एक पहेली मात्र ही है। जो इस पहेली को सुलझा लेता है, वही इंसान सहज जीवन को प्राप्त कर लेता है। लेकिन इस संसार में सहजता की परिभाषा को कमजोरी के साथ जोड़ा गया है। जो कि बिल्कुल भी ठीक बात नही है। संसार में आने वाले हर इंसान को बताया जाता है कि किस तरह जीवन में लड़कर कर जीत हासिल करनी है। जैसे कि मानो जीवन, जीवन ना हो एक युद्ध हो। और युद्ध में कोई व्यक्ति किस
प्रकार सहज रह सकता है। ईश्वर ने संसार को इस प्रकार बनाया है कि जिस प्रकार आप देखोगे उस तरह नजर आएगा। इसीलिए इस संसार में गलत करने वाला व्यक्ति भी खुद को सही समझता है और सही कार्य करना वाला व्यक्ति भी खुद को ठीक समझता है। लेकिन वावजूद इसके सही गलत का एक पैमाना इंसान के खुद के मन में होता है और एक पैमाना नैतिकता और आध्यात्म है। अब इंसान चाहे खुद को कितना भी ठीक माने लेकिन सही गलत का फैसला किसी दूसरे तरीके से ही होता है। आप क्या मानते है इसका अधिक महत्व नही रह जाता। बस अगर आप उस अध्यात्म और नैतिक विधि के अनुसार अपने जीवन में ठीक करने का प्रयास करें टैब आप अपने जीवन में बहुत हद तक हर प्रकार से ठीक कार्य करते पाए जाएंगे।
तो बात वापस वही आती है कि कुछ लोग इस जीवन को युद्ध की तरह देखते है और कुछ जीवन जीने की सहज विधि अपनाते है। लेकिन दोनों खुद को ठीक समझते है। इसके अतिरिक्त अगर हम यहां भी नैतिक और अध्यात्म की दृष्टि से देखें तब हम पाएंगे कि युद्ध और लड़ने की बात इंसान के अहंकार को बहुत भाती है। इसीलिए इंसान को अधिक खुशी मिलती है, जब वो बहुत अधिक परिश्रम और लड़ाईयों के बाद कुछ प्राप्त करता है और उसके कारण अपना गुणगान करता है। इससे क्या होता है? इससे इंसान के अहंकार में चार चांद लग जाते है।
इसके विपरीत वो इंसान जो इस जीवन को युद्ध की भाँति नही, बल्कि ईश्वर द्वारा दिया गया वरदान हो। इस कारण वह अपना जीवन सहज अवस्था को प्राप्त करके बिताते हैं। जहां अहंकार का कोई स्थान नही होता। वहां कुछ लड़कर प्राप्त कर लेने जैसा कुछ भी नही होता।
अब इन दोनों को अध्यात्म और नैतिकता की दृष्टी से देखें तो समझ पाएंगे कि अहंकार को बढ़ाने वाली विधि ठीक है या अहंकार को खत्म करने वाली विधि ठीक है।
यह जिम्मेदारी मैं पाठकों पर छोड़ता हूँ कि वह किस रास्ते को सही समझते है और किसे अपनाते है।
अहंकार के विषय में सभी ने यही कहाँ है कि यह नुकसान का कारण है, और अहंकार को छोड़ने की बात कही गयी है। फिर भी सभी मनुष्य स्वतंत्र है अपनी सही राह चुनने की।
क्या सही रहता है आप खुद सोच कर बताइये, सहज जीवन या युद्ध और चुनौतियों से भरा जीवन?
आपका अपना
#लेखक मित्र
-योगेन्द्र सिंह
sirfyogi.com
blog.sirfyogi.com
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें